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*अतिथि संपादक*
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*पंडित प्रदीप मोदी*
9009597101
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भाई साहब कलम मेरी है,शब्द मेरे हैं, लेकिन भावनाएं शुद्ध रूप से उन वृक्षों की है,जो मृत्युशैया पर पड़े,अंतिम श्वांसे ले रहे हैं। आप कहेंगे वृक्षों की भावनाएं आपने कैसे महसूस कर ली...? तो मैं कहूंगा भाई साहब, अतिसंवेदनशील साहित्यकार हूं... और सबसे बड़ी बात बचपन से ही मुझे सिखाया गया है वृक्षों में जीवन होता है, वृक्ष दाता होते हैं, वृक्ष जीवनदाता भी होते हैं।ऐसे दानवीर वृक्षों की भावनाओं को मेरे जैसा संवेदनशील साहित्यकार महसूस नहीं करेगा तो कौन करेगा? विकास के नाम पर,शहर सौंदर्यीकरण के नाम पर, महालक्ष्मी नगर चौराहे से लगाकर एल.एन.बी.क्लब तक, एबी रोड पर लहलहाते वृक्षों को काट दिया गया है। बूढ़े बलिष्ठ वृक्षों को काटकर सीमेंट कांक्रीट की सुविधा शहर को उपलब्ध कराने के लिए प्रशासन दिन-रात एक रहा है।काटे गए वृक्ष दशकों से अपने-अपने स्थान पर खड़े थे, इन्होंने सजीव,किंतु मूकदर्शक बनकर देवास के उतार-चढ़ाव देखे हैं, कईं पीढ़ियों को बचपन से लगाकर बूढ़ा होते देखा है,कईं वृक्ष तो शहरवासियों के दादा-परदादाओं के साथ पले-बढ़े हुए थे,वे बड़े-बुजुर्ग वृक्ष,विकास के नाम पर ठूंठों में परिवर्तित कर दिए गए। ठूंठ में बदल गए वृक्षों में जीवन तो है, किंतु दर्द भरा, मृत्यु को निहारता जीवन है ठूंठ हो चुके वृक्षों में। दर्द भरे जीवन से सिसकते वृक्षों की भावनाओं को महसूस करने के लिए एक संवेदनशील ह्रदय की आवश्यकता होती है और वह ह्रदय,सरस्वती पुत्र साहित्यकार के पास होता है। इसलिए मैं विकास के नाम पर बलि चढ़ गए इन वृक्षों की भावनाओं को महसूस करके अभिव्यक्त भी कर सकता हूं। जानते हो महालक्ष्मी नगर चौराहे से लगाकर एल.एन.बी.क्लब तक के ठूंठ में बदल चुके वृक्ष इस समय क्या विलाप कर रहे हैं? ये क्या कहने की कोशिश कर रहे हैं? ये वृक्ष कह रहे हैं, जैसे सब रहवासी हैं, वैसे ही हम भी इस शहर के रहवासी है, क्या हमारा संरक्षण करते हुए शहर का विकास नहीं किया जा सकता? शासन-प्रशासन की विकासोन्मुख सोच में वृक्षों के संरक्षण का समावेश क्यों नहीं?हम वृक्ष शहर से लेते ही क्या है? हमने तो हमेशा शहर को दिया ही दिया है, लकड़ी दी, फूल दिए, पत्ती दी और तो और शहर में रहने वाले मानवों को जीने के लिए आक्सीजन भी दी, यदि हमने कुछ लिया है तो उद्योगों से निकलने वाली जहरली गैसों को लिया है,मानव द्वारा छोड़ी गई गंदी कार्बन डाइऑक्साइड गैस को लिया है,बदले में हमने हमेशा मानव के रहने योग्य वातावरण बनाकर दिया है, प्रदुषण मुक्त वातावरण बनाकर दिया है। क्या यही हमारा दोष रहा?हम वृक्षों ने शहर के हर रहवासी को अपना सगा-संबंधी समझा है,हम शहर के रहवासियों के साथ बरसों हंसे है,रोए है, सबके दुख से दुखी हुए हैं,सुख से खुश हुए हैं, लेकिन ये क्या? यहां से वहां तक हम वृक्षों के कुटुंब को काटकर रख दिया। बूरा मत मानना, हम मृत्युशैया पर पड़े वृक्षों का मानना है कि यदि शहरवासी चाहते तो हम वृक्षों का जीवन बचा सकते थे, अभी भी बचा सकत है, क्योंकि हम ठूंठ हुए हैं,मरे नहीं है।हम वृक्षों को अपने जीवन से कोई मोह नहीं, लेकिन हमारी भावना रहती है कि हम अधिक से अधिक जीवन जीकर,धरती एवं मानव की सेवा करें और अपनी गति को प्राप्त करें, लेकिन हमें असमय मार दिया जाता है तो असीम पीड़ा होती है।यह विलाप,उसी पीड़ा की अभिव्यक्ति है।हम वृक्षों को काटने से पहले हमारे ही एक भाई-बंधु की छांव में खड़े रहकर सरकारी विभाग के अधिकारी वार्तालाप कर रहे थे कि हम वृक्षों का रिप्लांटिंग किया जाएगा, लेकिन कहां? हमें पुनर्स्थापित करने का स्थान जो भी हो, शहरवासियों को पता चल जाता तो हमारे शुभचिंतकों को सुविधा हो जाती, लेकिन उन्होंने स्थान का कोई उल्लेख नहीं किया।हम वृक्षों ने तो यहां तक सुना है कि हमारे लिए आरक्षित की गई जमीनें भी गायब हो रही है, हमारे लिए जमीनें तो बहुत सी आरक्षित की गई थी, लेकिन वह कहां गायब हो गई?पता नहीं।हम वृक्षों की भविष्य में उत्पत्ति भी होगी या नहीं? हमारी अनुपातिक उत्पत्ति, उपलब्धता पर असर पड़ेगा तो प्रकृति के संतुलन का क्या होगा?मानव जीवन का क्या होगा? खैर हमें देवास वालों से बहुत उम्मीदें थी, हमें विश्वास था कि जैसे हम नागरिकों के जीवन का संरक्षण करते हैं, नागरिक भी हमारे जीवन का संरक्षण करेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।हम वृक्षों के विनाश से भविष्य में होने वाले दुष्परिणामों को तो लोग समझ रहे हैं, लेकिन मान नहीं रहे हैं। देवास में ही ललित चौहान नामक युवा आरटीआई कार्यकर्ता बरसों से हम वृक्षों के संरक्षण के लिए जद्दोजहद कर रहा है, लेकिन वह हमारा नाश करने वाले सबल लोगों के सामने कब तक खड़ा रह पाएगा कुछ कहा नहीं जा सकता,हो सकें तो इस युवा को वृक्ष संरक्षण मुहिम में सहयोग करना, क्योंकि हम वृक्षों का संरक्षण ही मानव जीवन का संरक्षण हैं। मृत्युशैया पर दर्द से कराहते हम वृक्ष,देवास वालों से इतना ही कहना चाहते हैं कि हो सके तो हम वृक्षों का संरक्षण करते हुए विकास की योजना बनाओ, विनाश को आमंत्रित करने वाले काम मत करो। अच्छा! खुश रहना देवास वालों,हम असामयिक मौत मरते हैं।
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